लोकसभा चुनाव में विपक्ष मजबूत तो सत्ता पक्ष को हो सकता है भारी भरकम नुकसान
हरियाणा में प्रदेश सरकार के कामकाज से जनता का बड़ा धडा नाखुश
चंडीगढ़ विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र माने जाने वाले देश के लोकतंत्र का त्योहार लोकसभा चुनाव की वोटिंग की तारीख जैसे-जैसे पास आ रही है, वैसे वैसे ही हरियाणा में राजनीतिक दलों में सियासी उठापटक का दौर लगातार जारी है। तमाम राजनीतिक पंडित और विश्लेषक लोकसभा चुनाव को लेकर टिप्पणी तो कर रहे हैं लेकिन वे पूरी तरह स्थिति साफ करने से बच रहे हैं क्योंकि इस बार प्रदेश में लोगों के साइलेंट होने के कारण जनता के मूड को भाँपना बेहद मुश्किल हो चला है। प्रदेश में कुछ लोकसभा सीटें जिनमें गुरुग्राम, सिरसा व रोहतक पर तो राजनीतिक विश्लेषक टिप्पणी कर पा रहे हैं। जिनमें से गुरुग्राम सीट पर सत्ता दल भाजपा भारी नजर आ रही है तो सिरसा और रोहतक सीट पर कांग्रेस भारी पड़ती दिख रही है। अन्य 7 सीटों पर मुकाबला बेहद रोचक नजर आ रहा है क्योंकि इन सीटों पर किस पार्टी का कौन सा उम्मीदवार बाजी मार ले जाए यह कहना बड़ा मुश्किल है।
दरअसल इस बार लोकसभा चुनाव के मुद्दे जनता के हिसाब से जरा हटके नजर आ रहे हैं। इस बार लोगों के बीच किसान आंदोलन, बेरोजगारी, पेंशन और क्षेत्रीय विकास जैसे मुद्दे हावी नज़र आ रहे हैं। जो लोग मन बन चुके हैं कि इस बार सत्तारुढ दल को वोट नहीं देंगे। उनमें से अधिकतर लोग पिछले साढ़े 4 वर्षों में सरकार के कामकाज से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। हालांकि लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा हाई कमान ने स्थिति को भांपकर प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में अपना चेहरा जरूर बदला लेकिन उनका यह दांव भी अभी तक प्रभावी नजर नहीं आया। वहीं इस बार चुनाव में राजनीतिक पार्टियां अब तक जातिगत ध्रुवीकरण का दांव चलकर भी अपना माहौल नहीं बना पाई हैं। वही सत्ताधारी भाजपा अबकी बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर के सहारे प्रदेश में वोट मांगती नजर आ रही है।
इस बार भाजपा की उपलब्धियां के रूप में भाजपा उम्मीदवार आर्टिकल 370, राम मंदिर व केंद्र सरकार की विभिन्न स्कीमों को गिनवाकर वोट मांगते दिख रहे हैं। हालांकि इस बार विपक्ष पूर्व में हुए दो लोकसभा चुनाव से कहीं मजबूत दिखाई दे रहा है। जिसका एक कारण आम आदमी पार्टी से हाल ही में हुआ गठबंधन भी है। हरियाणा की सीमा एक तरफ पंजाब से लगती है तो दूसरी तरफ दिल्ली से इसलिए जहां आम आदमी पार्टी का प्रभाव है वहां गठबंधन का लाभ कांग्रेस को मिल रहा है। जबकि कुरुक्षेत्र सीट पर भाजपा उम्मीदवार नवीन जिंदल जैसे हैवीवेट कैंडिडेट के सामने जो दो बार कुरुक्षेत्र लोकसभा से संसद का चुनाव जीत चुके हैं, इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार आम आदमी पार्टी नेता सुशील गुप्ता पूरी मजबूती के साथ चुनाव में बने हुए हैं। इस बार विपक्ष स्थानीय मुद्दों जिसमें किसान आंदोलन, कर्मचारियों की पेंशन स्कीम, बुढ़ापा पेंशन, सरपंचों पर हुए लाठीचार्ज, बेरोजगारी, सरकारी पोर्टल जैसे मुद्दों को जनता के बीच उठा रहा है और इन स्थानीय मुद्दों के सहारे लगातार लोगों का ध्यान खींच रहा है।
खैर प्रदेश में वास्तविक स्थिति क्या रहेगी यह तो 4 जून को ही पता चल पाएगा लेकिन इस बार किसी भी पार्टी के लिए चुनाव आसान नहीं है और यह तब भी मुश्किल हो जाता है जब चुनाव पर लोग खुलकर बोलने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि इस बार सत्तारुढ दल को अच्छा खासा नुकसान झेलना पड़ सकता है। किस पार्टी को वोट देना है अधिकतर लोग यह डिसाइड कर चुके हैं लेकिन फिर भी ऐसे लोग बड़ी संख्या में हैं जो यह निर्णय नहीं ले पा रहे कि राष्ट्रीय मुद्दों को देखते हुए वोट करें या स्थानीय मुद्दों को देखते हुए क्योंकि दोनों जगह के मुद्दों को लेकर लोगों की अलग-अलग राय है। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रदेश में कौन सी पार्टी लोकसभा चुनाव में बाजी मारती है क्योंकि लोकसभा चुनाव परिणाम के मात्र 3 महीने बाद ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं और लोकसभा चुनाव के नतीजे निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव पर गहरा प्रभाव डालेंगे।
प्रदीप दलाल की कलम से….