जीवनदायिनी प्रकृति को आंख दिखाने के बेहद भयानक होंगे परिणाम
प्रकृति द्वारा बसाए गए जंगल को काटकर हमने अपनी सुविधा अनुसार कंक्रीट के बड़े-बड़े जंगल खड़े कर दिए। आज लोग अपनी गर्मी से बचने के लिए पहाड़ों का रुख कर रहे हैं लेकिन इन पहाड़ों और हरियाली देने वाले पेड़ पौधो को भी तो काट काटकर आखिर कंक्रीट के शहर बसा दिए लेकिन बेहद शांत पहाड़ों को गाड़ी के कनफोड़वा हॉर्न और सैकड़ो किलोमीटर तक जाम लगाकर वहां की जिंदगी को भी अशांत कर दिया। किसी भी हिल स्टेशन पर चले जाइए वहां पर लंबा जाम, यहां तक की यात्री अपनी रातें भी जाम में गुजारने को मजबूर दिखे। हमें वह जाम दिखा और देखिए अव्यवस्था भी लेकिन नहीं दिखा तो उन पेड़ों का दर्द जिनको हमने अपने सुविधा के लिए काट दिया।
हमें नहीं दिखा उन पहाड़ों का सड़कों में तब्दील हो जाने पर कटा हुआ स्वरूप जिसको हमने कंक्रीट के जंगल में बदल दिया। यकीन मानिए हमें जरूर दिखेगा प्रकृति का रौद्र रूप जो कंक्रीट के हमारे जंगलों को बहा ले जाएगा। जो गर्मी से बचने के लिए पहाड़ों में पहुंचे यात्रियों के वाहनों द्वारा मीलो तक फैली अशांति को शांति में बदल देगा। तब हम प्रकृति और भगवान को कोसेंगे क्योंकि यह मानव का स्वभाव ही तो है कि वह सिर्फ लेना जानता है देना नहीं, लेकिन जब अति हो जाती है तो जीवनदायिनी प्रकृति फिर से अपने प्राकृतिक रूप में आने के लिए प्राकृतिक आपदाओं का रूप धारण कर जो तांडव मचाती है, वह हमारे लिए सबक होना चाहिए था लेकिन किसको क्या फर्क पड़ता है।
बस कुछ दिन पहाड़ों में घूमें, ठंडी हवा का आनंद उठाया, पहाड़ों में कचरा फेंका, पहाड़ों की शीतल और स्वच्छ हवा को प्रदूषण से प्रदूषित कर दिया। हम कुछ संसाधन तो जुटा सकते हैं प्रकृति को नुकसान पहुंचाकर जिनसे हमें आराम मिल सके लेकिन जो भगवान ने हमें प्राकृतिक रूप से दिया है, उसे हम तबाह करके छोडेंगे हमारे आने वाली पीढ़ीयों को हमारे द्वारा की गई भूल के परिणाम के रूप में तबाही के मंजर में झोंकने के लिए इसलिए समय है प्रकृति को आंख दिखाना बंद कर दीजिए और प्रकृति को बचाने के लिए अधिक से अधिक पौधे लगाइए सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए नहीं बल्कि उन्हें इस प्रकार बड़ा कीजिए जैसे हम अपने बच्चों को करते हैं। भविष्य में यही पौधे ऑक्सीजन के साथ-साथ आपको छाया, फल और पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करेंगे।